Balaghat Tourist Places In Hindi |
[1] कान्हा राष्ट्रीय उद्यान | Kanha National Park -
मंडला और बालाघाट जिले में स्थित कान्हा राष्ट्रीय उद्यान मध्य प्रदेश के सबसे महत्वपूर्ण पर्यटन स्थलों में से एक है | कान्हा पार्क ना सिर्फ भारत में अपितु विश्व पटल पर अपनी अलग पहचान रखता है | कान्हा राष्ट्रीय उद्यान मध्य प्रदेश का सबसे बड़ा राष्ट्रीय उद्यान है | कान्हा उद्यान का क्षेत्रफल 940 वर्ग किलोमीटर है | कान्हा को 1 जून 1955 को राष्ट्रीय उद्यान और 1971 में टाइगर रिजर्व बनाया गया | कान्हा उद्यान बाघों के संरक्षण के लिए जाना जाता है सांथ ही यहाँ दलदली हिरण की लुप्तप्राय जाती भी पाई जाती है | बालाघाट जिले के मुक्की नामक स्थान में और मंडला के खटिया और सरही नमक स्थानों पर कान्हा पार्क के एन्ट्री गेट हैं | मुक्की में हांथी अथवा जिप्सी से पार्क घूमा जा सकता है | मुक्की के आस-पास कुछ अच्छी होटल भी हैं जहाँ पर्यटक रुक सकते हैं | बालाघाट से मुक्की गेट की दूरी करीब 80 किलोमीटर है |[2] लांजी का किला बालाघाट | Lanji Fort Balaghat -
बालाघाट से लगभग 55 किलोमीटर दूर लांजी नामक स्थान पर एक प्राचीन किला है | यह स्थान बालाघाट के महत्त्वपूर्ण पर्यटन स्थलों में से एक है | लांजी के किले का निर्माण 12 वीं शताब्दी में गोंड राजाओं ने करवाया था | लांजी का किला ऊँची-ऊँची दीवारों से घिरा है , किले के चारो कोनो पर चार बुर्ज थे जिनमे से दो बुर्ज नष्ट हो गए है और दो बुर्ज अभी भी सुरक्षित हैं | किला लगभग 7 एकड़ में फैला है | किले के अन्दर एक प्राचीन मंदिर है जो अभी भी सुरक्षित है और मंदिर की भव्यता और सुन्दरता देखते ही बनती है | किले के अंदर एक जलाशय भी है जहाँ राजा रानी स्नान किया करते थे | किले का अधिकांश भाग नष्ट हो गया है और कुछ भाग अभी भी सुरक्षित है | किले के अन्दर लगभग 300 वर्ष पुराने बरगद के पेड़ हैं |
लांजी में किले के पास ही माँ लंजकाई माता का मंदिर है | यह बहुत ही प्राचीन और प्रसिद्ध मंदिर है | दूर-दूर से लोग अपनी मन्नते मांगने यहाँ आते हैं |
Lanji ka Kila |
[3] गांगुलपारा झरना और गांगुलपारा बांध | Gangulpara waterfall and Gangulpara Dam -
गांगुलपारा झरना और गांगुलपारा बांध घूमने के लिए और पिकनिक मनाने के लिए बहुत ही अच्छा दर्शनीय स्थान है | गांगुलपारा झरना बालाघाट जिला मुख्यालय से लगभग 14 किलोमीटर दूर बैहर मार्ग के पास जंगलों से घिरा बहुत ही सुन्दर स्थान है इस झरने में एक नाले का पानी ऊँची पहाड़ी से गिरता है और देखने में बहुत ही आकर्षक और मन को मोह लेने वाला होता है | स्थानीय लोग अक्सर छुट्टियों के दिनों में यहाँ पिकनिक हेतु आते हैं | वर्षा ऋतु और शरद ऋतु के प्रारम्भ में गाँगुलपारा झरना घूमने हेतु उपयुक्त समय है |
गांगुलपारा झरने के पास ही गांगुलपारा डैम है | गांगुलपारा डैम में नाले के पानी को रोककर एक डैम बनाया गया है | गाँगुलपारा डैम से आप-पास के गांवों में सिंचाई हेतु पानी उपलब्ध करवाया जाता है | घने जंगलों से घिरा गाँगुलपारा डैम घूमने और पिकनिक के लिए यह जगह बहुत ही अच्छी है |
[4] ढुटी डैम लामता जिला बालाघाट | Dhuty Dam Lamta Balaghat -
ढुटी डैम बालाघाट जिले में लामटा नामक स्थान से 10 किलोमीटर दूर वैनगंगा नदी पर स्थित है | बालाघाट और सिवनी जिलों के बीच पहाड़ों और हरे भरे दृश्यों से घिरा ढुटी डैम सैलानियों के घूमने के लिए बहुत ही अच्छा पिकनिक स्पॉट है, यह स्थान बालाघाट मुख्यालय से लगभग 60 किलोमीटर दूर है | ढुटी डैम का निर्माण अंग्रेजी शासन के समय 1923 में ब्रिटिश इंजिनियर जार्ज मॉस हैरियट की देख रेख में हुआ | डैम निर्माण में प्रयोग होने वाली अधिकांश मशीने ब्रिटेन से बुलवाई गईं थीं | लामटा , लालबर्रा और आसपास के क्षेत्रों में सिंचाई के उद्देश्य से इस डैम का निर्माण किया गया | ढुटी डैम से दो नहरे निकलती है जिनमे से पूर्व की तरफ की नहर लामटा और पश्चिम की तरफ की नहर लालबर्रा की ओर जाती है |
[5] गोमजी -सोमजी (भारवेली-बालाघाट) | Gomji-Somji Balaghat -
बालाघाट से लगभग 10 किलोमीटर दूर भारवेली की पहाड़ियों के शिखर के बीच गोमजी-सोमजी का मंदिर है यह मंदिर ज्वालादेवी को समर्पित है | मंदिर में बालाघाट के सांथ ही महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के अन्य भागों से भी लोग दर्शन करने आते है | नवरात्री में यहाँ अत्यधिक भीड़ होती है कहा जाता है कि यहाँ भक्तों की हर मनोकामना पूरी होती है |[6] हट्टा की बावली जिला बालाघाट | Htta Ki Baoli Balaghat -
हट्टा की बावली बालाघाट आने वाले सैलानियों के घूमने के लिए एक महत्वपूर्ण पर्यटन और दर्शनीय स्थान है | बालाघाट जिला मुख्यालय से करीब 18 किलोमीटर दूर लांजी मार्ग पर हट्टा नामक गाँव में गोंड राजाओं द्वारा निर्मित पत्थरों से बनी हुई बहुमंजिला हट्टा की बावली (बावड़ी) बेजोड़ नक्कासी , अद्भुत कारीगरी से बनाई हुई रहस्यमई धरोहर है | हट्टा की बावली का निर्माण 17 से 18 शताब्दी के बीच गोंड राजाओं ने करवाया था | बावली से जुडी हुई कई किंवदंतियाँ हैं | हट्टा की बावली पत्थरों से निर्मित है यहाँ पत्थरों की जुड़ाई हेतु चूने , बेल और गुड़ के घोल का प्रयोग किया गया था | बावली की दीवार पर प्राचीन मूर्तियाँ अंकित हैं और कहा जाता है कि बावली के अन्दर कई सुरंग है इनमें से एक सुरंग लांजी के किले तक जाती थी | बावली में हमेशा पानी भरा रहता है | बावली का उपयोग राजा स्नान करने के लिए किया करते थे बावड़ी से जुडी कई किंवदन्तिया हैं | यह बावड़ी पर हैहयवंशी राजाओं , गोंड राजाओं और मराठों के कब्जे में रही है | अब यह बावड़ी पुरातत्व विभाग के अधीन है | 1987 में शासन ने इस बावड़ी स्थानीय जमीदार से लेकर अपने अधीन कर पुरातत्व विभाग को दे दिया था|
Hatta ki Bavli |
[7] राजीव सागर बांध (बावनथडी परियोजना) जिला -बालाघाट | Rajiv Sagar Dam Balaghat -
राजीव सागर बांध बालाघाट जिले में घूमने के लिए एक महत्वपूर्ण पर्यटन और दर्शनीय स्थान के सांथ एक पिकनिक स्पॉट भी है | राजीव सागर डैम को बावन थडी डैम अथवा कुडवा डैम के नाम से भी जाना जाता है | बावनथडी डैम परियोजना मध्य प्रदेश और महारष्ट्र की संयुक्त अंतर-राज्यीय परियोजना है | राजीव सागर बांध बावन थडी नदी पर बनाया गया है | राजीव सागर बांध मध्य प्रदेश के बालाघाट जिले के कटंगी के पास कुडवा ग्राम और महारष्ट्र के भंडारा जिले की तुमसर तहसील के पास बावन थडी गाँव में स्थित है | राजीव सागर बान्ध का मुख्य उद्धेश्य खेती के लिए सिंचाई हेतु पानी की व्यवस्था करना है | इस परियोजना से बालाघाट जिले के 97 गाँवों और भंडारा जिले की तुमसर तहसील के 85 गाँवों में सिंचाई हो रही है | 1975 में बावनथडी परियोजना की नींव रखी गई थी |
[8] कालीपीठ माता मंदिर बालाघाट | Kalipeeth Temple Balaghat -
बालाघाट शहर में माँ काली का प्रसिद्ध मंदिर है , बालाघाट और आस-पास के लोगों के लिए यह सिद्ध देवी स्थान और दर्शनीय स्थल है | ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर में माता काली की प्रतिमा धरती से प्रकट हुई है और और धीरे-धीरे धरती से बाहर आ रही है | प्रतिमा धरती के कितने अन्दर है इसकी जानकारी किसी को नहीं है | प्रतिवर्ष बालाघाट और आस-पास से हजारों श्रद्धालु यहाँ अपनी मन्नते मांगने के लिए आते है | स्थानीय लोग हर शुभ कार्य की शुरुआत काली माता के इसी मंदिर से करते हैं | यहाँ नव रात्रि में भक्तों की अपार भीड़ आती है |[9] दादा कोटेश्वर धाम लांजी बालाघाट | Koteshwar Dham Lanji Balaghat -
दादा कोटेश्वर धाम बालाघाट जिले का का प्रमुख धार्मिक दर्शनीय स्थान है | बालाघाट से 65 किलोमीटर दूर लांजी में भगवान शिव को समर्पित प्राचीन कोटेश्वर महादेव मंदिर है | कोटेश्वर मंदिर ना सिर्फ बालाघाट अपितु आस-पास के जिलों में भी प्रसिद्ध है | मंदिर निर्माण कब हुआ इसके सम्बन्ध में अलग अलग मत हैं | सर्वाधिक प्रचलित मत के अनुसार पत्थरों से निर्मित मंदिर को 11 वीं से 12 वीं सदी के बीच बनाया गया था | मंदिर के गर्भ गृह में प्राचीन एवं सिद्ध शिवलिंग स्थापित है | मंदिर की दीवारों पर चारो तरफ बहुत ही सुन्दर नक्कासी की गई है और मन्दिर के बाहर दीवार पर पत्थरों को तराश कर बहुत सी मूर्तियाँ बनाई गई हैं जो देखने में खजुराहो के मंदिरोंके समान हैं | कोटेश्वर महादेव मंदिर में बैसे तो साल भर भक्तों की भीड़ रहती है परन्तु श्रावण मास में दूर-दूर से भक्त यहाँ जल चढाने आते है और अपनी मनोकामनायें मांगते है | कहते हैं कि यहाँ भक्तों द्वारा मांगी गई हर मनोकामना पूरी होती है | श्रावण के महीने में भक्त कांवड़ यात्रा निकालते हैं और मंडला से लाया हुआ माँ नर्मदा का जल शिवलिंग पर चढाते हैं , कुछ भक्त बैनगंगा नदी और आस-पास के नदियों का जल भी चढाते हैं |
[10] रामपायली मंदिर बालाघाट | Rampayli Temple Balaghat -
बालाघाट जिला मुख्यालय से 45 किलोमीटर दूर है रामपायली नामक स्थान पर बालाजी का प्रसिद्ध मंदिर है | कहा जाता है कि भगवान राम अपने वनवास के दौरान माता सीता और छोटे भाई लक्ष्मण के सांथ यहाँ आये थे |
Rampayli Temple |
रामपायली में एक भब्य
राममंदिर है लोगों के अनुसार इस मंदिर का निर्माण लगभग 600 वर्ष पूर्व
भोंसले राजाओं ने करवाया था | मंदिर में भगवान राम और माता सीता के
प्रतिमायें हैं | कहा जाता है कि मंदिर का निर्माण इस तरह किया गया है कि
सूरज की पहली किरणें भगवान के चरणों पर पड़ती हैं | भगवान राम की प्रतिमा
वनवासी के भेष में है | अंग्रजी शासन काल में 1907 के गजेटियर में इस पर
लिखा गया है कि रामपायली के बालाजी मंदिर में यहाँ एक पत्थर पर भगवान राम
के पैरों के निशान हैं | इसी कारण इस स्थान को पदावली के नाम से जाना जाता
था जो बाद में रामपायली हो गया | मान्यतानुसार यहाँ ऋषि शरभंग का आश्रम था .
भगवान राम इसी आश्रम में आये थे और आश्रम आने के पहले एक विशाल राक्षस ने
उनका रास्ता रोका था जिसे देखकर सीता माता डर गईं थी | रामजी ने उस राक्षस
को मार कर सीतामाता को भयमुक्त करने के लिए उनके सिर पर हाँथ रखा था |
कुछ
कथाओं के अनुसार रामपायली में 400 वर्ष पूर्व एक व्यक्ति को चन्दन नदी में
भगवान की प्रतिमा होने का स्वप्न आया | चन्दन नदी से प्रतिमा लाकर एक पेड़
के नीचे स्थापित की गई बाद में नागपुर के भोंसले राजाजों मंदिर का
जीर्णोद्धार करवाया | 18 वीं सदी में मंदिर को आधुनिक रूप दिया गया |