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Monday, February 18, 2019

वीरांगना रानी अवंतीबाई जीवनी | Rani Avantibai jivani (Biography) -

 February 18, 2019     महापुरुष   

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Rani Avantibai

वीरांगना रानी अवंतीबाई जीवनी | Rani Avanti bai Jivani (Biography) -

रानी अवन्ती बाई (Rani Avanti bai) भारत की महान  वीरांगना थीं जिन्होंने 1857 की लडाई में अंग्रेजों के छक्के  छुड़ा दिए थे और अपनी मातृभूमि की रक्षा हेतु अपने प्राण न्योछावर कर दिए | 1857 के क्रान्ति में रानी अवन्ती बाई का वही योगदान है जो रानी लक्ष्मी बाई  का है , इसी कारण रानी अवन्ती बाई की तुलना रानी लक्ष्मी बाई से की जाती है , परन्तु रानी अवन्ती बाई को इतिहास में वह स्थान नहीं मिला पाया जो रानी लक्ष्मी बाई को मिला हुआ है | इतिहास इन दोनों महान वीरांगनाओं का हमेशा ऋणी रहेगा | रानी अवन्ती बाई का जन्म 16 अगस्त 1831 को ग्राम मनकेहणी जिला सिवनी के जमींदार राव जुझार सिंह के यहां हुआ था , अवंती बाई की शिक्षा दीक्षा ग्राम मनकेहणी में हुई | जुझार सिंह ने अपनी कन्या अवंती बाई का विवाह रामगढ़ रियासत के राजा लक्ष्मण सिंह लोधी के पुत्र राजकुमार विक्रमादित्य सिंह लोधी के सांथ  तय किया | राजा लक्ष्मण सिंह 1817  से 1850 तक रामगढ़ के शासक थे |  1850 में राजा लक्ष्मण सिंह के निधन के बाद राजकुमार विक्रमादित्य ने राजगद्दी संभाली | विक्रमादित्य वचपन से ही वीतरागी प्रवृत्ति के थे और पूजा पाठ और धार्मिक अनुष्ठानों में लगे रहते थे | राज्य क संचालन रानी अवन्तीबाई ( Rani Avantibai) ही करती थीं | इनके दो पुत्र थे अमान सिंह और शेर सिंह |  इनके दोनों पुत्र अमन सिंह और शेर सिंह छोटे ही थे की राजा विक्षिप्त  हो गए और  राज्य की जिम्मेदारी  रानी अवन्तीबाई के कन्धों पर आ गई |
रामगढ़ की रानी अवंतिबाई - E-Book

रामगढ पर कोर्ट ऑफ़ वार्ड्स की कार्यवाही -

यह समाचार सुनकर अंग्रेजों ने रामगढ राज्य पर ''कोर्ट ऑफ़ वार्ड्स''  की कार्यवाही की एवं राज्य के प्रशासन के लिए सरबराहकार नियुक्त कर शेख मोहम्मद और मोहम्मद अब्दुल्ला को रामगढ़ भेजा | जिससे रामगढ राज्य ''कोर्ट ऑफ़ वार्ड्स'' के अधीन चला गया |अंग्रेजों कि इस हड़प नीति को रानी जानती थी और दोनों सरबराहकारों  को रामगढ़ से बाहर निकाल दिया | इसी  बीच 1855 में अचानक राजा विक्रमादित्य  का निधन हो गया और राज्य की पूरी जिम्मेदारी रानी के ऊपर आ गई |
Rani Avantibai ka hitas aur balidan , rani avanti bai ka jivan parichay
Rani Avantibai

रानी अवंतिबाई और राजाओं का क्रांति के लिए सम्मलेन-

लार्ड डलहोजी की राजे रजवाड़ों को हडपने की नीति जिसे " व्यपगत का सिद्धांत " या " डलहोजी की हड़प नीति" कहा गया , जिसके कारन  सतारा , जैतपुर, संभलपुर, बघाट , उदयपुर ,नागपुर, झाँसी सहित कई देशी रियासतों का अंग्रजी साम्राज्य में विलय कर दिया गया और अन्य रियासतों को हडपने का अंग्रजी कुचक्र देश जोर-सोर से चल रहा था | अंग्रजों के इस कुचक्र का राजे रजवाड़ों ने  विरोध किया , जिसका रानी अवन्तीबाई ने  भी विरोध  किया | पुरवा में आस-पास के राजाओं और जमीदारों का विशाल सम्मलेन  बुलाया जिसकी अध्यक्षता 70 वर्षीय गोंड राजा शंकर शाह ने की | राजा शंकर शाह को मध्य भारत में क्रांती का नेता चुना गया | इस सम्मलेन में प्रचार प्रसार का कार्य रानी अवंतीबाई को सोंपा  गया | प्रचार के लिए एक पत्र और दो काली चूड़ियों की एक पुड़िया बनाकर प्रसाद के रूप में वितरित की गईं | इसके पत्र में लिखा गया -''अंगेजों से संघर्ष के लिए तैयार रहो या चूड़ियाँ पहनकर घर बैठो तुम्हें धर्म ईमान के सौगंध है जो इस कागज का सही पता बैरी को दो ''| जो राजा,जमींदार और मालगुजार पुड़िया ले तो इसका अर्थ क्रांति में अंग्रेजों के विरुद्ध अपना समर्थन देना था  | 

रानी अवंतिबाई और 1857 की क्रांति | Rani Avanti bai and Revolution of 1857 -

1857 की क्रांति महाकौशल तक फ़ैल चुकी थी | गढ़ा मंडला के शासक शंकर  शाह  ने विद्रोह के लिए विजयादशमी का दिन निश्चित किया | पूरे  महाकौशल में विद्रोह फैलने लगा और गुप्त सभाओं और प्रसाद की पूड़ियों का वितरण चलता रहा  | 18 सितम्बर को अंग्रेजों ने  गोंड राजा शंकर शाह  शाह और उनके पुत्र राजकुमार रघुनाथ  शाह को जबलपुर में अलग-अलग तोपों से बांधकर  उड़ा दिया | इसका  राजाओं और जमीदारों ने व्यापक विरोध किया |  विद्रोह में   शहपुरा के लोधी जागीरदार विजय सिंह और मुकास के  खुमान सिंह गोंड , हीरापुर के मेहरबान सिंह लोधी एवं देवी सिंह  शाहपुर के मालगुजार ठाकुर जगत सिंह, एवं सुकरी-बरगी के ठाकुर बहादुर सिंह लोधी शामिल थे। इनके अतिरिक्त विजयराघवगढ़ के राजा सरयू  प्रसाद, कोठी निगवानी के ताल्लुकदार बलभद्र सिंह, सोहागपुर के जागीरदार गरूल सिंह विद्रोह में शामिल हुये | रामगढ के सेनापति ने भुआ बिछिया थाने पर चढाई कर दी और उसे अपने कब्जे में ले लिया |रानी अवन्तीबाई के सिपाहियों ने घुघरी पर कब्जा कर लिया | विद्रोहियों ने मंडला नारायणगंज मार्ग को बंद कर दिया जिससे जबलपुर से आने वाली अंग्रजों की टुकड़ी का मार्ग बंद हो गया और इस प्रकार विद्रोह पुरे मंडला और रामगढ में फ़ैल गया | अंग्रेज डिप्टी कमिश्नर वाडिंग्टन इस विद्रोह को दबाने में असफल रहा |

रानी अवंति बाई और ग्राम खैरी(मंडला) की लड़ाई - 

इस समय तक मंडला नगर को छोड़कर पूरा जिला अंग्रेजों से मुक्त हो चुका  था |  23 नवम्बर  1857 को मंडला के पास  ग्राम खैरी के में अंग्रेजों और रानी अवन्तीबाई के बीच युद्ध हुआ जिसमें  शाहपुरा और मुकास के जमीदारों ने रानी का सांथ दिया | इस युद्ध में मंडला का अंग्रेज डिप्टी कमिश्नर वाडिंग्टन पूरी शक्ति लगाने के बाद भी कुछ ना कर सका और मंडला छोड़ सिवनी भाग गया इस प्रकार पूरा मंडला और रामगढ़ स्वतंत्र हो गया | इस प्रकार पूरा मंडला जिला और रामगढ़ राज्य स्वतंत्र हो गया |

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Rani Avanti Bai

अंग्रेजों का रानी अवंतिबाई के किले रामगढ़ पर हमला-

अंग्रेज अपनी हार से बौखलाए हुये थे और अपनी हार का बदला लेना चाहते  थे | अंग्रेज लगातार अपनी शक्ति सहेजते रहे अंग्रेजों ने 15 जनवरी 1858  को घुघरी पर नियंत्रण कर लिया    और  मार्च  1858 के दूसरे  सप्ताह में रीवा नरेश की सहायता से रामगढ को घेर लिया और   रामगढ़ पर हमला बोल दिया  | वीरांगना रानी अवन्तीबाई की सेना जो अंग्रेजों  की सेना की  तुलना में बहुत छोटी थी फिर भी साहस पूर्वक अंग्रेजों का सामना किया | रानी ने परिस्थितियों को भांपते हुये अपने किले से निकलकर डिंडोरी के पास देवहारगढ़ की पहडियों की ओर प्रस्थान किया |

रानी अवंती बाई का बलिदान |Sacrifice Of Rani Avantibai -

अंगेजों की सेना रानी अवन्ती बाई  का पता लगाते  हुये देवहारगढ़ की पहडियों  तक पहुँच गई | यहां वीरांगना रानी अवन्ती बाई (Rani Avanti bai) पहले से ही मोर्चा लगाये बैठी थी | 20 मार्च 1858 को रानी अवन्ती बाई ने शाहपुर के पास स्थित तालाब के पास बने मंदिर में पूजा अर्चना की और युद्ध मैदान में उतर गई | यहां अंग्रेजों और रानी के बीच घमसान युद्ध हुआ |  रानी अवन्ती बाई ने अपने आप को अंग्रेजों से घिरता देख वीरांगना रानी दुर्गावती का अनुकरण करते हुए  अपनी तलवार निकाली और कहा  “ हमारी दुर्गावती ने जीतेजी वैरी के हांथ अंग ना छुए जाने का प्रण लिया था , इसे ना भूलना’’  इतना कहकर रानी  अपने सीने में मारकर देश के लिए सर्वोच्च बलिदान दे दिया  |  वीरांगना रानी अवंती बाई जब मृत्यु सैय्या पर थीं तब उन्होंने अंगेजों को अपना बयान दिया कि  '' ग्रामीण क्षेत्र लोगों को मैंने ही विद्रोह के लिए भड़काया , उकसाया था , प्रजा बिलकुल निर्दोष है '' | इस प्रकार रानी ने हजारों लोगों को अंग्रेजों द्वारा दी जाने वाली यातनाओं से बचा लिया | इसके बाद इस क्षेत्र से आन्दोलन को दबा दिया गया और रामगढ भी अंग्रेजों के अधीन आ गया |

 रानी अवन्ती बाई  का बलिदान स्थल  बालपुर |Rani avanti bai sacrifice site Balpur -

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Balpur dindori

डिन्डोरी जिले के  
शाहपुर कस्बे के नजदीक ग्राम बालपुर में वीरांगना रानी अवन्तीबाई ( Rani Avantibai) ने  लड़ते-लड़ते अपने सीने में खंजर उतारा था | इस स्थान को बलिदान स्थल के रूप में सुरक्षित किया गया है | यंहा  प्रतिवर्ष रानी अवन्ती बाई का बलिदान दिवस मनाया जाता है | बालपुर से रानी के सैनिक घायल अवस्था में रानी अवन्ती बाई को रामगढ़ ले जा रहे थे तभी सूखी तलैया नामक स्थान पर रानी का  स्वर्गवास हो गया |सूखी तलैया नामक स्थान बालपुर और रामगढ के बीच पड़ता है |
रामगढ़ की रानी अवंतिबाई - E-Book

रानी अवन्ती बाई की समाधि | Samadhi of Rani Avanti Bai-

रानी अवन्ती बाई के वीरगति को प्राप्त हो जाने के बाद उनके पार्थिव शरीर को रामगढ लाया गया |रामगढ में ही रानी अवन्ती बाई की समाधि बनाई गई | रानी अवन्ती बाई की समाधि  देखरेख के अभाव में  अब बहुत ही जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है|

(रामगढ़ पहले मंडला जिले केअंतर्गत  आता था परन्तु मंडला जिले से डिंडोरी जिला अलग होने  के  पश्चात रामगढ डिंडोरी जिले के अंतर्गत आने लगा है | रामगर डिंडोरी से 23 किलोमीटर दूर अमरपुर विकास खंड से 1 किलोमीटर दूर है)
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Rani Avanti Bai
 रानी अवन्ती बाई की याद में जबलपुर में पवित्र नर्मदा नदी पर बने बरगी  डेम का नाम रानी अवन्ती बाई के नाम पर रखा गया | इसी डेम में रानी अवन्ती बाई का जन्म स्थान ग्राम मनकेहणी डूब क्षेत्र में आ गया है |
  देश के लिये अपने प्राणों का बलिदान देने बाली वीरांगना रानी अवन्ती बाई (Rani Avanti bai)को हमारा शत शत नमन् | देश हमेसा इनका ऋणी रहेगा | वीरांगना रानी अवन्तीबाई अमर रहें |
रानी अवन्ती बाई के रामगढ राज्य के बारे में अधिक जानकारी नीचे दी गई लिंक पर भी उपलब्ध है-
https://www.dindori.co.in/2019/09/ramagarh-state-of-rani-avantibai.html

रानी दुर्गावती से संबंधित पुस्तक (Books ) ऑनलाइन उपलब्ध है जिसकी लिंक नीचे दी गई है -
रामगढ़ की रानी अवंतिबाई   (लेखक- राजीव ठाकुर)

रानी अवंतिबाई से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न / उत्तर - FAQ

प्रश्न- रानी अवन्ती बाई कौन थीं ?

उत्तर- रानी अवन्ती बाई रामगढ़ के रानी थें उन्होंने 1857 की क्रांति में अंग्रेजों से लड़ते-लड़ते अपने प्राणों का बलिदान दिया |

प्रश्न - रानी अवन्ती बाई का जन्म कहाँ हुआ था ?

उत्तर- रानी अवन्ती बाई का जन्म वर्तमान म.प्र. के सिवनी जिले के मनकेहडी नामका स्थान पर जमीदार राव जुझार सिंह के घर 16 अगस्त1831 में हुआ था |

प्रश्न - रानी अवन्ती बाई के पिता का नाम क्या था ?

उत्तर- रानी अवन्ती बाई के पिता का नाम राव जुझार सिंह था वे मनकेहडी के जमींदार थे |

प्रश्न - रानी अवन्ती बाई के ससुर कौन थे ?

उत्तर- रानी अवन्ती बाई के ससुर रामगढ़ रियासत के राजा लक्ष्मण सिंह थे |

प्रश्न - रानी अवन्ती बाई के पति का नाम क्या था ?

उत्तर- रानी अवन्ती बाई के पतिकुंवर विक्रमादित्य थे | बाद में विक्रमादित्य रामगढ़ रियासत के राजा थे |

प्रश्न - रानी अवन्ती बाई कहाँ की रानी थीं ?

उत्तर- रानी अवन्ती बाई रामगढ़ रियासत की रानी थीं | रानी अवन्ती बाई के शासन काल में रामगढ़ राज्य का क्षेत्रफल 4000 वर्ग किलोमीटर था | अंग्रेजी शासन काल में रामगढ़ मंडला जिले के अंतर्गत आता था वर्तमान में रामगढ़ डिंडोरी जिले के अमरपुर ब्लॉक में आता है |

प्रश्न - रानी अवंतिबाई के कितने पुत्र थे , उनके पुत्रों का नाम क्या था ?

उत्तर- रानी अवन्ती बाई के दो पुत्र थे उनके नाम अमन सिंह और शेर सिंह थे |

प्रश्न - रानी अवन्ती बाई का शासन क्षेत्र कौन सा था ?

उत्तर- रानी अवंतिबाई रामगढ रियासत की रानी थीं उस समय का रामगढ़ वर्तमान म.प्र. के मंडला, डिंडोरी और इसके आसपास के क्षेत्र मैं फैला हुआ था |

प्रश्न - रानी अवन्ती बाई की मृत्यु कब हुई  और कैसे हुई ?

उत्तर- अंग्रेजों से लड़ते हुए 20 मार्च 1858 को रानी अवन्ती बाई शहीद हुईं |

प्रश्न - रानी अवन्ती बाई का बलिदान स्थल कहाँ है ?

उत्तर- रानी अवन्ती बाई का बलिदान स्थल म.प्र. डिंडोरी जिला मुख्यालय से लगभग 16 किलोमीटर दूसर शाहपुर के पास बालपुर नामक स्थान पर है |

प्रश्न - रानी अवंतिबाई बलिदान दिवस कब मनाया जाता है ?

उत्तर- रानी अवन्ती बाई का बलिदान दिवस प्रतिवर्ष 20 मार्च को मनाया जाता है |

प्रश्न - रानी अवन्ती बाई की समाधि कहाँ है ?

उत्तर- रानी अवन्ती बाई की समाधी के संबंध में कुछ स्पष्ट जानकारी नहीं मिलती है | कुछ लोग रानी अवन्ती बाई के बलिदान स्थल को ही इनका समाधि स्थल मानते हैं परन्तु बालपुर में ऐसा कोई भी बोर्ड या प्रतीक नहीं है जिसके आधार पर इसे रानी अवंतिबाई की समाधि कहा जाये | रामगढ़ के स्थानीय लोगों के अनुसार घायल रानी को बालपुर से रामगढ़ लाते समय रास्ते में उनकी मृत्यु हो गई थी | रानी अवन्ती बाई को रामगढ़ लाकर उनका अंतिम संस्कार किया और रामगढ में ही रानी अवन्ती बाई की समाधि बनाई गई जो अभी बहुत ही जीर्ण-शीर्ण हालत में है |

रानी दुर्गावती से संबंधित पुस्तक (Books ) ऑनलाइन उपलब्ध है जिसकी लिंक नीचे दी गई है -
रामगढ़ की रानी अवंतिबाई   (लेखक- राजीव ठाकुर)
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