अमरकंटक दर्शनीय स्थल और मंदिर | Amarkantak Parytan Sthal, Mandir -
अमरकंटक मध्यप्रदेश के अनूपपुर जिले में स्थित पवित्र नर्मदा नदी का उद्गम स्थल है होने के सांथ ही सोन नदी और जोहिला नदी का उद्गम स्थल भी है | पवित्र नर्मदा नदी का उद्गम स्थल होने के कारण साल भर यहाँ श्रद्धालु और नर्मदा परक्रमावासी आते हैं | अमरकंटक को हिन्दुओं का पवित्र तीर्थ स्थल होने के कारण तीर्थ राज भी कहा जाता है | अमरकंटक अपनी धार्मिक मान्यताओं के कारण तीर्थ स्थान और सिद्धक्षेत्र के रूप प्रसिद्ध है सांथ हे यह अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए भी जाना जाता है | अमरकंटक मेकल पर्वत पर स्थित है | यहां विंध्य और सतपुड़ा पर्वतों का मेल होता हैं |
माँ नर्मदा को भगवान शिव की पुत्री माना जाता है नर्मदा को रेवा भी कहा जाता है | अमरकंटक में भगवान शिव ने तपस्या की थी , पवित्र नर्मदा की उत्पति भगवान शिव के कंठ से मानी जाती है | इसके अतिरिक्त अमरकंटक दुर्वासा ऋषि, भृगु ऋषि और कपिल मुनि के तपोस्थली भी रहा है | अमरकंटक को आम्रकूट भी कहा जाता था | अमरकंटक में आदिगुरू शंकराचार्य और उसके बाद कबिदास ने भी ध्यान किया है | अमरकंटक में कल्चुरी शासकों और रीवा के शासकों ने राज्य किया है जिनके द्वारा बनाये गए मंदिर आज भी मौजूद हैं |
अमरकंटक के मंदिर और दर्शनीय स्थल | Amarkantak Temple and tourist spot-
अमरकंटक भारत के प्रमुख दर्शनीय और धार्मिक पर्यटन स्थानों में से एक
है | यहाँ पर्यटकों के घूमने के लिए कई धार्मिक
और प्राकृतिक स्थान हैं जिनका वर्णन इस प्रकार है –
(1) माँ नर्मदा उद्गम स्थल अमरकंटक | Narmda Udgam Sthal Amarkantak -
अमरकंटक पवित्र नर्मदा नदी का उद्गम स्थल है | मेकल
पर्वत से निकलने के कारण नर्मदा को मेकलसुता भी कहते है | यहाँ
एक कुंड है इसमें छोटी-छोटी जलधाराएँ निकलती रहती हैं यही पवित्र जलधाराएँ कुण्ड
में एकत्र होकर पवित्र नर्मदा नदी के बाल रूप में बदल जाती हैं | परिसर के अन्दर
ही अन्दर माँ नर्मदा की एक छोटी सी धारा मुख्य कुण्ड से दूसरे कुण्ड में जाती है
जो दिखलाई नहीं देती है | नर्मदा परिकृमा वासियों को मंदिर
परिसर में इस बात का विशेष ध्यान रहना पड़ता है कि धोखे से भी नर्मदा की धरा को पार
ना कर लें | मुख्य उद्गम स्थल कुण्ड से नीचे की तरफ दो कुण्ड और बनाये गये हैं जिनमें श्रद्धालु स्नान कर सकते है |
माँ नर्मदा उद्गम स्थल अमरकंटक |
नर्मदा परिक्रमा वासियों के लिए अलग प्रवेश द्वार है | माँ नर्मदा कुण्ड के चारो ओर लगभग चौबीस मंदिर
हैं जिसमे नर्मदा मंदिर, शिव मंदिर, कार्तिकेय
मंदिर, श्री राम जानकी मंदिर, अन्नपूर्णा
मंदिर, दुर्गा मंदिर, श्री सूर्यनारायण
मंदिर, श्री राधा कृष्णा मंदिर, शिव परिवार, ग्यारह रूद्र मंदिर और रोहणी माता मंदिर प्रमुख हैं | इन सभी मंदिरों में सबसे प्रमुख मंदिर माँ नर्मदा का है जिसमें माँ
नर्मदा की काले पत्थर से निर्मित सिद्ध प्रतिमा स्थापित है | माँ नर्मदा को देश की
सात पवित्र नदियों में से एक माना जाता है |
प्रातः और सायं को उद्गम स्थल में माँ नर्मदा की भव्य आरती होती है | जनश्रुति
के अनुसार पहले इस स्थान पर बांस का झुण्ड था जिसमें से माँ नर्मदा निकलती थीं बाद
में रेवा नायक द्वारा इस स्थान पर कुंड का निर्माण करवाया गया | 1939 में रीवा के महाराज गुलाब सिंह ने माँ नर्मदा उद्गम कुंड, स्नान कुंड और परिसर के चारो ओर घेराव का निर्माण मुस्लिम कारीगरों से करवाया
गया | मंदिर परिसर में काले हांथी की मूर्ति है जिसे औरन्गजेब के शासन काल में
खंडित कर दिया गया | आज भी लोग इस हांथी के प्रतिमा के नीचे
से निकलकर पाप पुण्य के परीक्षा देते हैं |
(2) कल्चुरी कालीन मन्दिर अमरकंटक | Kalchuri Temple Amarkantak –
अमरकंटक में कई मंदिर हैं इनमें प्रमुख है कल्चुरी कालीन मंदिर हैं | कल्चुरी नरेश कर्णदेव ने 1041-1073 ई. के बीच अमरकंटक में कई मन्दिरों का निर्माण करवाया था | नर्मदा कुंड के दक्षिण में लगभग 100 मीटर दूरी पर कल्चुरी काल के मंदिरों का समूह है, इनमें प्रमुख मंदिर हैं –
(A) कर्ण मन्दिर अमरकंटक-
यह मंदिर भगवान् शिव को समर्पित है मंदिर में तीन गर्भ गृह हैं | परिसर में प्रवेश करते ही पंच मठ दिखलाई देते हैं |
प्राचीन कर्ण मंदिर अमरकंटक |
(B) शिव मंदिर –
भगवान शिव को समर्पित इस मंदिर को मच्छेन्द्रनाथ मन्दिर के नाम से भी जाना जाता है | इस मंदिर में शिवलिंग युक्त गर्भगृह, अंतराल और एक मंडप है | इसका शिखर कलिंग शैली में बना प्रतीत होता है |
(C) विष्णु मन्दिर –
इस मंदिर को केशव नारायण मन्दिर के नाम से भी जाना जाता है | इस मंदिर में भगवन विष्णु की अत्यन्त कलात्मक चतुर्भुजी प्रतिमा है | मूर्ति के चारो ओर काले ग्रेनाईट पत्थरों से निर्मित दस अवतारों की प्रतिमायें उत्कीर्ण है | समीप में लक्ष्मी जी की प्रतिमा है |
(D) पातालेश्वर मन्दिर अमरकंटक–
भगवान शिव को समर्पित इस मंदिर का निर्माण आदि गुरु शंकराचार्य ने करवाया था | मंदिर का गर्भगृह मंडप से 1.4 मीटर नीचे है इसी कारण मंदिर को पातालेश्वर मंदिर कहा जाता है | मंदिर में प्रतिवर्ष श्रवण मास के अंतिम सोमवार को माँ नर्मदा का प्रादुर्भाव होता है और जल शिवलिंग के ऊपर तक भर जाता है | लोगों की मान्यता है कि माँ नर्मदा भगवान शिव की स्नान कराने आती हैं | साल के अन्य किसी भी दिन ऐसा नहीं होता |
(E) पंचमठा मंदिर अमरकंटक–
यह पांच मंदिरों का समूह है इसिलए इसे पंचमाथा मंदिर कहा जाता है | पत्थर के चबूतरे पर स्थित इस मंदिर पर चूने का मोटा प्लास्टर है | यह मंदिर 15-16 शताब्दी के गोंड शासनकाल में निर्मित माने जाते हैं |
(F) जुहिला मंदिर –
इस मंदिर का नाम यहाँ से निकलने वाली जुहिला नदी के नाम पर रखा गया है | मंदिर में देवी की खंडित प्रतिमा है | मंदिर का निर्माण गहोरा के बघेल राजवंश के शासन काल में 14 वीं शताब्दी में माना जाता है |
(G) सूरज कुण्ड अमरकंटक–
माना जाता है कि 8 वीं शताब्दी में आदिगुरू शंकराचार्य ने इस कुंड का निर्माण करवाया था इसे पवित्र नर्मदा नदी का उद्गम कुण्ड भी माना जाता था | इसका जीर्णोद्धार 11 वीं शताब्दी में राजा कर्णदेव द्वारा करवाया गया | इन सभी मंदिरों का जीर्णोद्धार पुरातत्व विभाग द्वारा करवाया गया |
(3) श्रीयंत्र महामेरु मंदिर अमरकंटक | Shriyantra Mandir Amarkantak -
अमरकंटक में स्थित श्रीयंत्र मंदिर को श्रीयन्त्र के 3D रूप में बनाया गया है | मंदिर के द्वार पर 4 देवियों के मुख की आकृति की विशाल मूर्तियाँ है जो माँ लक्ष्मी, सरस्वती, काली और भुवनेश्वरी का प्रतिनिधित्व करती हैं | नीचे की तरफ 64 योगनियों की मूर्तियाँ हैं | द्वार पर गणेश जी और कार्तिकेय जी की मूर्तियाँ भी विराजमान हैं | श्रीयंत्र की गोल आकृति के परिसर के मध्य में मुख्य मंदिर है जिसके केंद्र में माँ त्रिपुर सुन्दरी की प्रतिमा है |
श्रीयंत्र मंदिर अमरकंटक |
श्रीयंत्र मंदिर परिसर को गोलाकार आकृति में बनाया गया है जो देखने में बहुत सुन्दर है , इसका निर्माण भी विशेष मुहूर्त में किया जाता है | मंदिर का निर्माण कार्य 1991 से किया जा रहा है | मंदिर निर्माण कार्य अभी पूरा नहीं हुआ है | मंदिर की नक्कासी और सुन्दरता अद्भुत है |
श्रीयन्त्र महामेरु मंदिर अमरकंटक में माँ नर्मदा उद्गम स्थल से 1 किलोमीटर दूर सोनमुड़ा मार्ग पर स्थित है | यह मंदिर भी घने जंगलों से घिरा है | मंदिर का निर्माण महामंडलेश्वर श्री सुकदेवानंद जी महाराज द्वारा कराया जा रहा है |
(4) माई की बगिया अमरकंटक | Mai Ki Bagiya Amarkantak -
अमरकंटक में नर्मदा उद्गम कुंड से एक किलोमीटर की दूरी पर मै की बगिया नामक स्थान है | यहाँ एक छोटा सा मंदिर भी है | माई की बगिया में एक कुण्ड है जिसमें सदा जल भरा रहता है इस कुण्ड को चरणोदक कुंड के नाम से जानते हैं | कुछ लोगों का मानना है की माँ नर्मदा का वास्तविक उद्गम स्थल यही स्थान है | यहाँ से निकली जलधारा ही वर्तमान नर्मदा उद्गम कुण्ड से पुनः निकलती है |
माई की बगिया अमरकंटक |
दूसरी मान्यता यह है कि भगवान
शिव की पुत्री नर्मदा बचपन में इसी स्थान पर अपनी सहेलियों के सांथ खेलने के लिए आती थीं और यहीं से अपने
लिए पुष्पों को चुनती थीं | आज भी यह स्थान एक बगिया की तरह दिखलाई देता है | इस
स्थान पर गुलबाकावली के पौधे पाये जाते है गुलका वली के पौधों से नेत्र रोगों के
लिए औषधि बनाई जाती है | जनश्रुति के अनुसार बचपन में
गुलबाकावली माँ नर्मदा की सहेली थीं|
(5) सोनमुडा अमरकंटक | Sonmuda
Amarkantak -
अमरकंटक में नर्मदा उद्गम स्थल से 1.5 किलोमीटर दूर सोनमुड़ा नमक स्थान सोन नदी का उद्गम स्थल है और सोन नदी के पास ही भद्र नदी का उद्गम स्थल है | कुछ ही दूरी पर सोन और भद्र दोनों मिल जाते हैं और इसे ''सोन- भद्र'' कहा जाता है | सोन को ब्रम्हाजी का पुत्र कहा जाता है |
सोन-भद्र कुंड के पास हनुमान
जी, दुर्गा माता और बहुत से देवी-देवताओं के छोटे-छोटे मंदिर है | कुण्ड से नीचे की
तरफ जाने के लिए सीढियां बनी हुई है | यहां सोन-भद्र 100 फीट की पहाड़ी से एक झरने के रूप में गिरते हैं |
सोनमुड़ा अमरकंटक |
सोनमुड़ा अपने प्राकृतिक सोंदर्य के लिये जाना जाता है | सोनमुड़ा एक ऊँची पहाड़ी पर स्थित है और सोंमुदा से देखने पर कई किलोमीटर दूर का सुन्दर दृश्य दिखलाई देता है | सोनमुड़ा में बहुत से बन्दर और लंगूर मिल जायेंगे जिन्हें श्रद्धालु फूटे और खाना भी खिलाते हैं | कभी कभी ये बन्दर लोगों के पर्स और सामान भी छीन लेते हैं इसीलिए इन बंदरों से सावधनी बरतना चाहिए | कभी भी इन बंदरों से छीना-झपटी का प्रयास नहीं करना चाहिए नहीं तो ये काट भी सकते हैं |
(6) श्री जालेश्वर मन्दिर अमरकंटक | Jwaleshwar Dham -
श्री ज्वालेश्वर (जालेश्वर ) धाम मंदिर अमरकंटक से 10 किलोमीटर दूर है | यहीं से अमरकंटक की तीसरी नदी जोहिला की उत्पत्ति एक कुए से हुई है | यहां भगवन शिव का सुन्दर मन्दिर है माना जाता है कि यहाँ स्थित शिवलिंग स्वयं भगवान शिव ने स्थापित किया था | मान्यता है कि इस स्थान पर भगवान शिव ने वाणासुर ( त्रिपुरासुर) नामक राक्षस का वध कर उसके तीन टुकड़े कर दिए थे |
श्री ज्वालेश्वर मंदिर अमरकंटक |
पुराणों में इस स्थान को महारुद्र मेरु कहा गया है | यहां भगवन शिव ने माता पार्वती के सांथ निवास किया था | माना जाता है कि जालेश्वर महादेव के पूजन से ब्रम्ह हत्या और जीव हत्या से छुटकारा मिल जाता है | नर्मदा पुराण, बाल्मीकि पुराण और अन्य पुराणों में इस स्थान का वर्णन मिलता है | यहाँ पितरों के तर्पण श्राद्ध इत्यादि करना तीर्थों से ज्यादा फलदाई बतलाया गया है |
(7) कपिलधारा
प्रपात अमरकंटक | Kapil Dhara Amatkantak –
नर्मदा उद्गम स्थल से 6 किलोमीटर दूर कपिलधारा नामक जल-प्रपात है जो पवित्र नर्मदा नदी का पहला जलप्रपात है | कपिलधारा में पवित्र नर्मदा का जल 100 फीट की ऊंचाई से नीचे गिरता है | अत्यधिक तेज वेग से नीचे गिरते समय पानी जोरदार आवाज करता हुआ कुण्ड में गिरता है | बरसात में कपिलधारा में मुख्य धारा के सांथ कुछ अन्य धारायें भी दिखलाई देती है परन्तु जनवरी-फरवरी के बाद मुख्य धारा ही शेष बचती है |
कपिल धारा अमरकंटक |
कपिल धारा के पास ही कपिल मुनि का आश्रम और कपिलेश्वर मंदिर है | कपिल मुनि ने यहाँहीं कठोर तप किया था और इसी स्थान पर सांख्य दर्शन की रचना की थी | कपिल मुनि के नाम पर इस जलप्रपात का नाम कपिल धारा पड़ा |
कपिलधारा के आस पास अनेक गुफायें है | यह स्थान चारो तरफ से घने जंगलों से घिरा हुआ है | कपिलधारा के पास बहुत से दुर्लभ औषधीय पौधे पाए जाते हैं |
(8) दूधधारा प्रपात अमरकंटक | Doodh Dhara Amarkantak -
कपिल धारा जलप्रपात से लगभग 1 किलोमीटर नीचे जाने पर दूध
धारा जलप्रपात मिलाता है | माँ नर्मदा पर स्थित यह दूसरा
जलप्रपात है | इसकी ऊंचाई लगभग 10-12 फुट है | यहां पवित्र
नर्मदा जल दूध के समान सफेद दिखाई देता है इसीलिये इस प्रपात को दूध-धारा प्रपात कहा
जाता है | जनश्रुति के अनुसार यहां दुर्वासा ऋषि ने तपस्या
की थी | पहले इस जलप्रपात को दुर्वासा धारा भी कहा जाता है
परन्तु बाद में लोग इसे दूध धारा के नाम से जानने लगे |
दूध धारा अमरकंटक |
इस जलप्रपात के आस-पास का वातावरण बहुत ही शांत और पवित्र है | कपिल धारा से दूध-धारा तक जाने का रास्ता जंगल से घिरा हुआ बहुत उबड़-खाबड़ और ऊँचा-नीचा है | बरसात में यहाँ तक पहुँचने में बहुत कठनाई होती है |
(9)
सर्वोदय जैन मन्दिर अमरकंटक | Jain Mandir Amarkantak –
अमरकंटक का सर्वोदय जैन मंदिर अदभुत वास्तुकला का सुन्दर नमूना है | इस मंदिर का निर्माण लाल पत्थरों से किया गया है | मंदिर के गर्भ गृह में प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ की अष्टधातु से निर्मित प्रतिमा स्थापित है | प्रतिमा का वजन 24 टन है | भगवान आदिनाथ अष्ट धातु के कमल सिंहासन पर विराजमान है | कमल सिंहासन का बजन 17 टन है | इस प्रकार प्रतिमा और कमल सिंघासन का कुल बजन 41 टन है | प्रतिमा को मुनिश्री विद्यासागर जी महाराज ने 06 नवम्बर 2006 को विधि-विधान से स्थापित किया | मंदिर का निर्माण पूरा होने पर मंदिर की ऊँचाई 151 फीट, चौड़ाई125 फीट और लम्बाई 490 फीट होगी |
जैन मंदिर अमरकंटक |
सर्वोदय जैन मंदिर की वास्तुकला बहुत सुन्दर है | मंदिर का निर्माण सिर्फ तरासे हुए लाल पत्थरों से किया गया है | मंदिर निर्माण में ईंट, लोहा और सीमेंट का प्रयोग नहीं किया गया | मंदिर के अन्दर और बाहर सुन्दर नक्कासी की गई है | मंदिर की दीवारों पर तरासी हुई छोटी-बड़ी मूर्तियाँ लगाई गई है |
(10) अमरेश्वर महादेव मंदिर | Amreshwar Mandir Amarkantak -
अमरेश्वर महादेव मंदिर अमरकंटक से 10 किलोमीटर दूर छत्तीसगढ़ की सीमा पर स्थित है | इस मंदिर में एक विशाल शिवलिंग स्थापित किया गया है जिसकी ऊंचाई 11 फीट है और इसका वजन 51 टन है | इस शिवलिंग पर अभिषेक करने के लिए सीढियां लगाई गई हैं ताकि भक्त गण आसानी से शिवलिंग पर जल चढ़ा सकें और पूजा अर्चना कर सकें | शिवलिंग को ओमकारेश्वर से और जलहरी को कटनी से लाया गया है |
अमरेश्वर महादेव मंदिर का निर्माण कार्य 2009 से प्रारम्भ किया गया | मंदिर परिसर में 12 ज्योतिर्लिंग स्थापित किये गये हैं | मंदिर के सामने काले पत्थर से निर्मित नंदी की विशाल प्रतिमा है | मंदिर के द्वितीय तल पर कई छोटे-छोटे मंदिर बनाये गए हैं जिनमें दुर्गा माता के नौ रूप, आदि गुरु शंकराचार्य, महाराजा अग्रसेन की मूर्तियाँ रखी गई हैं |
अमरेश्वर महादेव मंदिर में वैसे तो साल भर भक्तों का आना लगा रहता है परन्तु शिवरात्रि और सावन सोमवार को श्रद्धालु बड़ी संख्या में यहाँ पहुँचते हैं | अमरेश्वर महादेव मंदिर ज्वालेश्वर मंदिर के पास में स्थित है |
(11) भृगु कमंडल अमरकंटक | Bhargu Kamandal Amarkantak -
अमरकंटक में इस स्थान पर भृगु ऋषि ने कठोर तप किया
था | जहाँ भृगु ऋषि का कमंडल रखा था वहां से एक नदी की जलधारा निकली जिसे करा कमंडल कहा जाता है | आगे जाकर यह नदी पवित्र नर्मदा नदी में मिल जाती है | भृगु कमण्डल नर्मदा उद्गम स्थल से 4 किलोमटर दूर है | भृगु कमण्डल में
कमंडल की आकृति की चट्टान है जिसके अन्दर पानी भरा रहता है |
सोनमुड़ा होते हुये भृगु कमण्डल जाया जा सकता है |
(12) चंडिका गुफा अमरकंटक | Chandika Gufa Amarkantak –
भृगु कमंडल से थोड़ी दूरी पर चंडिका गुफा नामक स्थान
है | यहां पहुँचने का मार्ग बहुत ही कठिन
है इसीलिए यहाँ बहुत ही कम लोग जा पाते हैं | इस स्थान पर मधुमक्खियों और जंगली
जानवरों का भी खतरा रहता है | यह योगियों के लिए
तपस्या क्षेत्र है | माना जाता है कि वर्षो पूर्व गुफा के
अन्दर योग साधना मंत्र लिखा गया है |
(13) कबीर चबूतरा अमरकंटक | Kabir Cabutra Amarkantak –
संत कबीर चबूतरा अमरकंटक से 5 किलोमीटर दूर बिलासपुर-डिन्डोरी रोड के समीप मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ की सीमा पर स्थित है | यहाँ संत कबीर दास जी का 600 वर्ष पुराना आश्रम है | इस स्थान पर संत कबीर दास ने कई वर्षों तक ध्यान लगाया था | कबीर चबूतरा में एक छोटा सा पानी का कुंड है | कुंड की विशेषता है कि कुण्ड का पानी सुबह दुधिया रंग का हो जाता है और इस कुण्ड से साल भर पानी की धारा बहती रहती है | यहीं कबीर की कुटिया और कबीर चबूतरा है जिस पर कबीरदास जी बैठा करते थे | कहा जाता है कि इस स्थान परा कबीरदास जी और गुरु नानक जी मिले थे और उन्होंने आध्यात्म के सांथ-सांथ कई विषयों पर चर्चा की थी | इसी स्थान के पास एक वट-वृक्ष है माना जाता है कि कबीरदास इसी वट-वृक्ष के नीचे बैठकर ध्यान किया करते थे |
(14) पंचधारा अमरकंटक | Panchdhara Amarkantak -
पंचधारा माँ नर्मदा पर स्थित एक सुन्दर स्थान है जो
कपिल धरा से लगभग 3 किलोमीटर दूर है | कहा जाता है कि इस स्थान पर पहले माँ नर्मदा
की धारा पांच भागों में दिखलाई देती थी इसिलए इसे पंचधारा कहा जाता था | बड़े-बड़े
पत्थरों और चट्टानों के बीच से कल-कल करती हुई
माँ नर्मदा की निर्मल और स्वच्छ जलधारा इस स्थान पर कुछ छोटे-छोटे झरने बनाती
है | पंचधारा को ट्रेकिंग पॉइंट के रूप में विकसित किया जा रहा है | जंगलों से
घिरा यह स्थान बहुत सुन्दर और मनमोहक स्थान है|
पंचधारा के पास ही एक आश्रम भी है | नर्मदा
परिक्रमावासी परिक्रमा के दौरान इस स्थान पर अवश्य आते हैं |
(15) बहगड़ नाला
श्री गणेश मन्दिर | Bagadnala Ganesh Mandir –
अमरकंटक से 35 किलोमीटर दूर राजेन्द्रग्राम के निकट
गणेश जी का प्रसिद्ध मंदिर है इस मंदिर में गणेश जी की प्रतिमा लगातार बढ़ रही है | कहा जाता है कि भगवान गणेश जी की प्रतिमा स्वतः ही पृथ्वी के अन्दर से
प्रकट हुई है | पहले प्रतिमा की ऊंचाई एक फुट थी जो अब 11 फुट हो गई है | वर्षो पहले गणेश जी की प्रतिमा खुले स्थान पर
रखी हुई थी बाद में यहाँ मंदिर बनवाया गया | यहाँ आने वाले भक्तों द्वारा मांगी गई
हर मनोकामना पूरी होती है इसीलिए दूर-दूर से भक्तजन यहाँ आते हैं | यह मंदिर घने
जंगलों से घिरा है |
गणेश जी के मंदिर के पास कल्चुरी-कालीन मंदिर भी है जो देख-रेख के अभाव में खण्डहर में तब्दील होने लगा है | पास ही गौरी कुंड और गौरी गुफा है | मंदिर से 2 किलोमीटर दूर एक नदी पर सुन्दर जलप्रपात है | इस जलप्रपात तक जाने का रास्ता बहुत ही उबड़-खाबड़ है | पगडंडियों से होकर इस जलप्रपात तक पहुंचा जा सकता है |
(16) धुनी पानी अमरकंटक | Dhuni Pani Amarkantak –
अमरकंटक से 4 किलोमीटर दक्षिण में धुनी पानी नामक स्थान है | बहुत पुरानी बात है एक ऋषि तपस्या कर रहे थे तपस्या स्थल के पास ही उनकी धुनी जल रही थी, तभी धुनी वाले स्थान से पानी निकला और धुनी को शांत कर दिया | इसी कारण इस स्थान का नाम धुनी पानी हो गया | यह स्थान भी घने जंगलों से घिरा है | धुनी पानी नामक स्थान में एक कुंड इसके पानी में स्नान करने से असाध्य रोग ठीक हो जाते हैं | पास में ही एक बगीचा है|
(17) शम्भू धारा अमरकंटक | Shambhu Dhara Amarkantak –
माँ नर्मदा मन्दिर से 5 कि. मी. दूर उत्तर दिशा
में घने जंगलों के बीच शम्भू-धारा नामक जलप्रपात है | शम्भू धारा जाने के लिए हिंडाल्को
माईन्स और बाराती गाँव होकर जाना पड़ता है | शम्भू धारा जाने का रास्ता बहुत कठिन
होने से कम ही लोग जा पाते हैं |
(18) गायत्री
मंदिर अमरकंटक | Gayatri Mandir –
अमरकंटक में माँ नर्मदा मंदिर के समीप लगभग 350
मीटर की दूरी पर गायत्री माता का भव्य मंदिर है | मंदिर में माता गायत्री की
प्रतिमा स्थापित है |
(19) दुर्गा धारा अमरकंटक | Durga Dhara amarkantak -
अमरकंटक से 7 किलोमीटर दूर घने जंगलों के बीच दुर्गा
धारा नामक जलप्रपात है | दुर्गा धारा माँ नर्मदा उद्गम स्थल से उत्तर-पूर्व दिशा
में है | इस जलप्रपात के पास में ही दुर्गा माता का मंदिर भी है जो बहुत ही भव्य
है | दुर्गा धारा जाने वाले रास्ते में काली गुफा और धरमपानी नामक स्थान भी मिलते
हैं |
(20) चक्र तीर्थ अमरकंटक | Chakra Teerth Amarkantak–
माँ नर्मदा के तट पर स्थित चक्रतीर्थ नामक दिव्य स्थान है जो कपिलधारा
जलप्रपात से 2 किलोमीटर पूर्व दिशा में स्थित है | पुराणों में लेख मिलता है कि इसी
स्थान पर भगवान विष्णु को सुदर्शन चक्र प्राप्त हुआ था | चक्रतीर्थ धाम के पास ही
सीताराम बाबा जी का दिव्य आश्रम है |
अमरकंटक में कुछ स्थानों पर सन-सेट और सन-राईस
पॉइंट हैं | इन स्थानों पर भी सैलानियों की भीड़ लगी रहती है | अमरकंटक और इसके
आस-पास की गुफाओं , कुटियों और आश्रमों में बहुत से सिद्ध साधू-संत रहते हैं | दर्शनार्थी
इन आश्रमों , कुटियों और गुफाओं में जाकर साधू संतो के दर्शन का लाभ लेते हैं |
अमरकंटक में कई दुर्लभ जड़ी बूटियां पाई जातीं है जो बड़ी ही आसानी से यहाँ की
आयुर्वेदिक दुकानों और साधू संतों के पास मिल जाती हैं | लोग दूर-दूर से जड़ी-बूटी
लेने अमरकंटक आते हैं | अमरकंटक में ऊपर बतलाये गए स्थनों के अतिरिक्त भी कई ऐसे
स्थान हैं जो पर्यटकों को अपनी तरफ आकर्षित करते हैं |
अमरकंटक के आश्रम | Ashram In Amarkantak -
अमरकंटक पवित्र तीर्थ स्थल होने के कारण प्राचीन काल से ही कई महान
ऋषि-मुनियों और साधु-संतों का आश्रय स्थल भी रहा है| आज भी अमरकंटक और इसके आस-पास
के क्षेत्रों में बहुत से आश्रम हैं जिनमें प्रमुख हैं-
(1) शंकराचार्य आश्रम अमरकंटक –
माँ नर्मदा उद्गम स्थल के दक्षिण में 200 मीटर दूर शंकराचार्य आश्रम है
| पहले यह छोटा सा स्थान था अब यहाँ भव्य आश्रम है |
(2) श्री वर्फानी आश्रम अमरकंटक -
माँ नर्मदा मंदिर के पूर्व में 100 मीटर दूरी पर बर्फानी आश्रम है |
बर्फानी दादा जी बहुत बड़े संत थे और वैष्णव संप्रदाय के श्री रामानन्द जी से
संबंधित थे |
(3) मार्कंडेय आश्रम अमरकंटक-
माँ नर्मदा मंदिर से 300 मीटर दूर दक्षिण दिशा में मार्कंडेय आश्रम है
|
मार्कंडेय आश्रम |
(4) शान्ति कुटी आश्रम अमरकंटक –
माँ नर्मदा मंदिर से 1
किलोमीटर पश्चिम दिशा में शान्ति कुटी नामक परम मनमोहक आश्रम है |
(5) कल्याण सेवा आश्रम अमरकंटक –
कल्याण सेवा आश्रम शान्ति कुटी आश्रम के पास स्थित है | 1978 में कल्याण सेवा आश्रम की स्थापना की गई |
कल्याण आश्रम अमरकंटक |
कल्याण सेवा आश्रम के द्वारा धार्मिक क्रिया कलापों के सांथ-सांथ चिकित्सालय, शिक्षा केंद्र , आदिवासी बालकों के आवास, भोजन और शिक्षा की व्यवस्था की जाती है | कल्याण सेवा आश्रम में परिक्रमा वासियों के रुकने और भोजन की व्यवस्था भी की जाती है |
(6) एरंडी आश्रम अमरकंटक
एरंडी आश्रम माँ नर्मदा मंदिर से तीन 3 कि.मी. दूर पश्चिम दिशा में स्थित है | इस स्थान पर माँ नर्मदा और एरंडी नदी का संगम स्थल है | कहा जाता है कि इस संगम स्थल पर गर्भ हत्या के पाप से मुक्ति मिलती है | यहाँ किया गया पिण्डदान गया जी से भी अधिक पुण्यदायी माना जाता है | एरंडी संगम में दान तर्पण करने से पितरों को सद्गति प्राप्त होती है |
(7) मृत्युंजय सेवा आश्रम अमरकंटक –
मृत्युंजय सेवा आश्रम कल्याण आश्रम के समीप माँ नर्मदा से करीब 1 कि.मी.
दूर स्थित है | आश्रम का गेट बहुत ही भव्य है |
मृत्युंजयआश्रम अमरकंटक |
(8) सीताराम बाबा आश्रम अमरकंटक–
यह आश्रम श्री श्री सीताराम बाबा जी द्वारा बनवाया गया है | आश्रम माँ
नर्मदा के तट पर स्थित है |
(9) कपिलमुनि आश्रम अमरकंटक –
कपिलमुनि आश्रम कपिलधारा जलप्रपात के पास स्थित है | जनश्रुति के
अनुसार इसी स्थान पर कपिलमुनि ने तपस्या की थी और सांख्य दर्शन की रचना भी की थी |
(10) फलाहारी आश्रम अमरकंटक–
फलहारी आश्रम भी अमरकंटक का महत्वपूर्ण आश्रम है जो माँ नर्मदा उद्गम
स्थल से 250 मीटर दूरी पर स्थित है | आश्रम
माऊली सरकार के शिष्यों द्वारा संचालित किया जाता है | आश्रम लोगों की सेवा के
कार्य करता है |
अमरकंटक में ठहरने की व्यवस्था-
अमरकंटक के होटल | Amarkantak Hotels -
अमरकंटक के मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की सीमा पर स्थित होने के कारण मध्य प्रदेश शासन और छत्तेसगढ शासन के विभिन्न विभागों द्वारा बनवाये गए रेस्ट हाउस और टूरिस्म विभाग के होटलों के अतिरिक्त कई प्राइवेट होटल, आश्रम और धर्म शालायें हैं जिनमे यहाँ आने वाले तीर्थ यात्री और पर्यटक रुक सकते है | अमरकंटक के प्रमुख होटल हैं –
(2) Shri Mata Sadan
(3) Maikal Hills Resort
(4) Baba ki Badi
(5) Chir-Chhira Resort
(6) Narmada Anandam
(7) Anushree Home Stayz
(9) J. P. Palace
(10) Sal Valley Resort
(11) Hotel Teeratham
(12) The Residency
अमरकंटक के प्रमुख होटलों की ऑनलाइन बुकिंग नीचे दी गई वेबसाइट पर उपलब्ध है -
इन सभी होटलों के अतिरिक्त बहुत से होटल, धर्मशालायें और आश्रम भी है जो लोगों के ठहरने की व्यवस्था कर देते हैं |
अमरकंटक कैसे पहुंचें | How to Reach Amarkantak -
अमरकंटक भारत का एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है यहाँ देश भर से श्रद्धालु आते हैं | अमरकंटक आने वाले श्रद्धालुओं में बड़ी संख्या नर्मदा परिक्रमा वासियों की होती है | अमरकंटक मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की सीमा पर स्थित है इसी कारण दोनों
राज्यों से अमरकंटक जाने के लिए पर्याप्त साधन मिल जाते हैं |
वायु मार्ग- अमरकंटक से सबसे
नजदीकी एयरपोर्ट बिलासपुर है जो अमरकंटक से 125 किलोमीटर दूर है वहीँ जबलपुर का डुमना एयरपोर्ट 245 किलोमीटर है |
रेल मार्ग- अमरकंटक सबसे नजदीकी रेलवे
स्टेशन पेंड्रा रोड है जो 38 किलोमीटर है, अधिकतर श्रद्धालु रेल्वे मार्ग से पेंड्रा तक आते है फिर पेंड्रा से बस या किसी अन्य साधन से अमरकंटक तक आ जाते हैं | अमरकंटक से अनूपपुर रेल्वे स्टेशन 72 किलोमीटर है |
सड़क मार्ग- अमरकंटक सड़क मार्ग से मध्य प्रदेश के जबलपुर, डिंडोरी,शहडोल, अनूपुर और छत्तीसगढ़ के बिलासपुर , पेंड्रा, गोरेला से जुदा हुआ है | जबलपुर से अमरकंटक 245 किलोमीटर,अनूपपुर से 72 किलोमीटर, डिन्डोरी से 88 किलोमीटर और शहडोल से 100 किलोमीटर है वहीँ बिलासपुर से 125 किलोमीटर, गोरेला से 40 किलोमीटर है | अमरकंटक से पेंड्रा, डिन्डोरी, जबलपुर, शहडोल, मंडला और बिलासपुर के लिए नियमित बस सेवा उपलब्ध है |