Ramgarh Ki rani Avantibai |
रामगढ़ - रानी अवन्ती बाई की कर्मभूमि | Ramgarh of Rani Avantibai -
मध्य प्रदेश के डिंडोरी जिला मुख्यालय 23 किलोमीटर की दूरी पर रानी अवन्ती बाई की कर्मभूमि और राजधानी रामगढ के अवशेष हैं | रामगढ का महल एक ऊँची पहाड़ी पर स्थित था जो खरमेर नदी के किनारे बसा हुआ था | रामगढ वर्तमान में डिंडोरी जिले के अमरपुर विकास खंड के अन्तर्गत आता है और अमरपुर से मात्र 1 किलोमीटर की दूरी पर है | पूर्व में रामगढ मंडला जिले का हिस्सा था परन्तु 1998 में मंडला जिले के विभाजन के पश्चात रामगढ़ डिंडोरी जिले के अंतर्गत आने लगा है | अंग्रेजी शासनकाल में डिंडोरी क्षेत्र रामगढ के नाम से जाना जाता था |वर्तमान में रामगढ| Present Condition Of Ramgarh -
वर्तमान में रामगढ एक छोटा सा गाँव है | यहाँ एक टीलानुमा पहाड़ी प पर रानी अवन्ती बाई के महल के अवशेष की कुछ दीवारें ही शेष बची हैं | महल के अवशेष के सामने राधा-कृष्ण जी का मंदिर है मंदिर में भगवान् गणेशजी की प्रतिमा भी है | यह मंदिर रानी अवन्ती बाई के वंशजों ने बनबाया था | म.प्र. शासन द्वारा 1988-1989 ईसवी में रानी अवन्ती बाई की याद में इस स्थान पर एक पार्क बनवा दिया गया है | पार्क में घोड़े पर सवार रानी अवन्ती बाई की सफेद रंग की विशाल प्रतिमा लगवाई गई है | पार्क के चारो तारफ दीवार बनाई गई है | प्रतिवर्ष 16 अप्रेल को रानी अवन्ती बाई के जन्मदिवस पर और 20 मार्च को बलिदान दिवस पर इस स्थान पर रानी की याद में कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं |
Ramgarh kile ke avshesh |
रामगढ का इतिहास| History of Rmagarh -
रामगढ राज्य अपने चरमोत्कर्ष के समय 4000 वर्ग मील मैं फैला था जिसमें शाहपुर, शाहपुरा, मेहंद वानी ,रामगढ़,रामपुर, मुकुटपुर ,प्रतापगढ़ ,चौबीसा और करोतिया नामक 10 परगने और 681 गाँव थे जिसकी सीमायें मंडला,डिंडोरी,शोहागपुर और अमरकंटक तक फैली थीं | गोंड राजवंश के समय रामगढ़ राजा संग्राम शाह के 52 गढ़ में से एक था तब रामगढ़ को अमरगढ़ कहा जाता था | गोंड राजा निजाम शाह के शासन काल में रामनगर (मंडला) में आदमखोर शेर ने आतंक मचाया था जिसे मुकुट मणि और मोहनसिंह नामक भाइयों ने मारा था | शेर के सांथ लड़ाई में मुकुट मणी भी मारे गए थे | राजा ने दोनों की बहादुरी से खुश होकर मोहन सिंह को सेनापति की उपाधि से सम्मानित किया | मोहन सिंह की मृत्यु के बाद गोंड राजा ने गाजी सिंह जिनका उपनाम गज सिंह था को मुकुटपुर तालुका का जमीदार बना दिया गया | उस समय मुकुटपुर में डाकुओं और विद्रोहियों का बर्चस्व होने के कारण राजा को इस क्षेत्र से को राजस्व नहीं मिल पता था | गाजी सिंह ने इस क्षेत्र से डाकुओं और विद्रोहियों के आतंक को ख़त्म किया | गाजी सिंह की वीरता से प्रसन्न होकर राजा ने इन्हें रामगढ की जागीर दे दी और इन्हें राजा की उपाधी प्रदान की | बाद में गाजी सिंह ने रामगढ़ का बहुत विस्तार किया | इनके पश्चात इसी वंश के राजा लक्ष्मण सिंह हुए और उनके पुत्र विक्रमादित्य ( विक्रमजीत ) हुए | विक्रम जीत का विवाह सिवनी के ग्राम मनकेहणी के जमींदार राव जुझार सिंह की पुत्री अवन्ती बाई से हुआ |रानी अवन्ती बाई और रामगढ़ | Rani Avantibai and Ramgarh -
रानी अवन्ती बही का जन्म ग्राम मनकेहणी जिला सिवनी के जमींदार राव जुझार सिंह के घर जन्म 16 अगस्त 1831 को हुआ | अवंती बाई का विवाह 17 साल की उम्र में रामगढ़ रियासत के राजकुमार विक्रमादित्य सिंह लोधी के सांथ हुआ | 1850 में राजा विक्रमादित्य ने राजगद्दी संभाली | इनके दो पुत्र थे कुंवर अमान सिंह और कुंवर शेर सिंह | इनके दोनों पुत्र छोटे ही थे की राजा विक्षिप्त हो गए और राज्य की जिमेदारी रानी के कन्धों पर आ गई |यह समाचार सुनकर अंग्रेजों ने रामगढ राज्य को ''कोर्ट ऑफ़ वार्ड्स'' की कार्यवाही की एवं राज्य के प्रशासन के लिए सरबराहकार नियुक्त कर शेख मोहम्मद और मोहम्मद अब्दुल्ला को रामगढ़ भेजा | जिससे रामगढ राज्य ''कोर्ट ऑफ़ वार्ड्स'' के अधीन चला गया |रानी ने इसे अपना अपमान समझ कर सरबराहकारों को रामगढ़ से बहार निकल दिया इसी बीच अचानक राजा का निधन हो गया और राज्य की पूरी जिमेदारी रानी के ऊपर आ गई |Radha-Krishna Mandir Ramgarh |
रामगढ़ राज्य और 1857 की क्रांती | Ramgarh State and 1857 Revolution-
इसी बीच 1857 की क्रांति महाकौशल तक फ़ैल चुकी थी |राजाओं और जमीदारों ने अंगेजों का व्यापक विरोध किया | रामगढ के सेनापति ने भुआ बिछिया थाने पर चढाई कर दी और उसे अपने कब्जे में ले लिया |रानी के सिपाहियों ने घुघरी पर कब्जा कर लिया | और विद्रोह पुरे मंडला और रामगढ में फ़ैल गया | अंग्रेज विद्रोह को दबाने में असफल रहे 23 नवम्बर 1957 को ग्राम खैरी के पास अंग्रेजों और रानी के बीच युद्ध हुआ जिसमें आस पास के जमीदारों ने रानी का सांथ दिया | इस युद्ध में अंगेजों की हार हुई और पूरा मंडला और रामगढ़ स्वतंत्र हो गया | रानी अवंतिबाई ने दिसंबर 1857 से फरवरी 1858 तक गढ़ा मंडला पर राज किया | परन्तु अंग्रेज लगातार अपनी शक्ति सहेजते रहे और जनवरी 1858 को घुघरी पर नियंत्रण कार लिया | मार्च 1858 के दूसरे सप्ताह रामगढ को घेर लिया और रामगढ़ के महल को अत्यधिक नुकसान पहुँचाया |युद्ध में रीवा नरेश ने अंग्रेजों का सांथ दिया | रानी अवन्ती बाई इसी बीच शाहपुर के नजदीक देवहार गढ़ चली गई | देवहार गढ़ की ऊँची पहाड़ी पर में रानी ने मोर्चा बनाया था | यहाँ रानी अवन्ती बाई ने गुर्रिल्ला युद्ध निति अपनाई | परन्तु अंग्रेजों ने रानी को छारो तरफ से घेरना प्रारंभ कर दिया | यहाँ रानी और अंग्रेजों में घमासान युद्ध हुआ और शाहपुर के पास ग्राम-बालपुर में 20 मार्च 1958 को रानी अवन्ती बाई ने अपने आप को अंग्रेजों से घिरता देख वीरांगना रानी दुर्गावती का अनुकरण करते हुए स्वयं की तलवार मार ली ताकि वो अंग्रेजों के हाँथ ना आ सके | रानी के सैनिक गंभीर अवस्था में रानी को रामगढ़ ले जा रहे थे तभी बालपुर और रामगढ़ के बीच सूखी -तलैया नामक स्थान पर रानी अवन्ती बाई वीर-गती को प्राप्त हुई |इसके बाद इस क्षेत्र से आन्दोलन को दबा दिया गया और रामगढ भी अंग्रेजों के अधीन आ गया |
रानी अवन्ती बाई की समाधि रामगढ | Rani Avanti Bai Samadhi-
रामगढ में महल के खंडहरों से कुछ दूर पहाड़ी के नीचे की ओर रामगढ वीरांगना रानी अवन्ती बाई की समाधि है , जो बहुत ही जर्जर अवस्था में है | इसी के पास रामगढ राजवंश के अन्य व्यक्तिओं की भी समाधियाँ हैं |Rani Avantibai ki Samadhi |
रानी अवन्ती बाई के बाद रामगढ|Ramgarh After Rani Avantibai-
युद्ध के बाद रामगढ राज्य के तुकडे कर दिए गये | अंग्रेजों ने रामगढ़ का सोहागपुर क्षेत्र रीवा नरेश को दे दिया गया । शेष क्षेत्र रामगढ के कब्जे में रहा | रानी अवन्ती बाई युद्ध में जाने के पूर्व अपने दोनों पुत्रों कुंवर अमान सिंह और कुंवर शेर सिंह को अलोनी नामक गाँव में छोड़ गई थीं | अंग्रेजों द्वारा रानी के दोनों पुत्रों को कुछ गाँव देकर इन्हें पेंशन देना शुरू कर दिया | रामगढ रियासत के अंतिम राजा इन्द्रजीत सिंह हुए इनकी तीन पत्नियां थी परन्तु इनकी कोई संतान नहीं थी | रामगढ़ राज्य की अंतिम वारिश भनिया भाई थी जो राजा इन्द्रजीत की पत्नी थी | भनिया भाई का देहावसान 1981 में हुआ |देश के लिये अपने प्राणों का न्योछावर करने वाली रानी अवन्ती बाई को हमारा सत-सत नमन्|
रानी अवन्ती बाई के बारे में अधिक जानकारी इस लिंक पर क्लिक कर प्राप्त कर सकते हैं - रानी अवन्ती बाई की जीवनी
रानी दुर्गावती से संबंधित पुस्तक (Books ) ऑनलाइन उपलब्ध है जिसकी लिंक नीचे दी गई है -
रामगढ़ की रानी अवंतिबाई (लेखक- राजीव ठाकुर)
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