Dindori District MP | डिन्डोरी जिला म.प्र.

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Sunday, March 17, 2019

डिण्डोरी जिले का इतिहास | Dindori History

 March 17, 2019     जिला के बारे में   


डिण्डोरी जिले का इतिहास | Dindori History

डिण्डोरी (DINDORI) जिले की स्थापना 25 मई 1998 में मण्डला जिले से डिण्डोरी, शाहपुरा, समनापुर ,अमरपुर, बजाग और करंजिया को अलग कर की गई इसलिए डिण्डोरी जिले का इतिहास (Dindori History) भी मंडला जिले के समान ही है | सन 1851 अंगेजों द्वारा मण्डला को जिला बनाया गया जिसमें रामगढ की भूमि मिलाकर 18 तलुकें थीं सन 1951 तक डिण्डोरी को रामगढ़ के नाम से जाना जाता था जो मण्डला जिले की तहसील थी | 1857 की क्रान्ति में रानी अवंतीबाई  के वीरगति को प्राप्त होने के बाद  रीवा के राजा को रामगढ के 2089 गांवों में से 1039 गांवों को सोहागपुर का हिस्सा बनाकर को सोंप दिया गया शेष 1050 गाँव डिण्डोरी तहसील का हिस्सा बने रहे | मंडला को 1861 में मध्यप्रांत का हिस्सा बना दिया गया | भारत की आजादी के बाद भी डिण्डोरी मंडला जिले का हिस्सा बना रहा और 25 मई 1998 को डिण्डोरी को मंडला से प्रथक कार अलग जिले का दर्जा दे दिया गया |

कल्चुरी राजवंश (Kalchuri Dynasty)-

गढ़ा मंडला पर अलग-अलग राजवंश के स्वतंत्र राजाओं  ने शासन किया जिनमे मडावी गोंड राजा और कलचुरी हैहयवंशी  प्रमुख हैं | शासकीय दस्तावेजों के अनुसार 875 ईसवी से 1042 ईसवी तक मंडला क्षेत्र पर कलचुरी हैहयवंशी राजाओं ने शासन किया | इस क्षेत्र में आज भी कल्चुरी राजाओं द्वारा बनाये गये मंदिर और स्मारक मुख्य हैं | डिन्डोरी जिले के कुकर्रामठ को कल्चुरी राजा कोकल्यदेव द्वारा 1000 ईसवी के आसपास बनवाया हुआ माना जाता है | मंडला को 1500 ईसवी के पूर्व माहिष्मती नगरी कहा जाता था | 

गोंड राजवंश (Gond Dynasty)-

गढ़ा मंडला को गढ़ा कटंगा के नाम से भी जाना जाता था | मान्यतानुसार जदूरई (यादवराय) मडावी ने  गोंड राजवंश  में स्थापना की गई | इस वंश के सबसे प्रतापी राजा संग्राम शाह थे जिन्होंने 52 गढ़ों पर विजय प्राप्त कर अपने साम्राज्य को  मंडला, जबलपुर, नरसिंहपुर ,सागर , दमोह  तक फेला लिया | महाराजा संग्रामशाह  का शासन काल  1482-1532 ईसवी माना जाता है | 
महाराजा संग्राम शाह के पुत्र दलपत शाह हुये जिन्होंने 18 वर्ष शासन किया और इनका विवाह 1542 में इनका विवाह चंदेल राजकुमारी रानी दुर्गावती से हुआ | 1545 ईसवी में रानी ने पुत्र वीरनारायण को जन्म दिया | वीर नारायण जब छोटे थे तभी राजा दलपत शाह की  1550 में लम्बी बीमारी के बाद  मृत्यु हो गई | रानी दुर्गावती अपने अल्पवयस्क पुत्र वीरनारायण के राज्याभिषेक के सांथ गढ़ा साम्राज्य का संचालन करने लगीं | रानी दुर्गावती ने 16 वर्ष (1548–1564 ईसवी ) तक कुशलता से राज्य का संचालन  किया | इतिहास में महारानी दुर्गावती का नाम बहुत ही गौरव के सांथ लिया जाता है जिन्होंने अपने राज्य की रक्षा के लिए कई लड़ियाँ लड़ीं और जीते भीं | रानी दुर्गावती का संपन्न राज्य पर मालवा के शासक बाजबहादुर ने कई बार आक्रमण किया परन्तु वह हर बार पराजित हुआ | मुग़ल शासक अकबर भी रानी के राज्य को अपने अधीन करना चाहता था अकबर ने अपने रिश्तेदार आसफ खां के नेतृत्व में गोंडवाना साम्राज्य पर हमला करवा दिया एक बार तो आसफ खान पराजित हुआ और अगली बार उसने दुगनी सेना के सांथ रानी पर हमला बोला इसमे मुग़ल सेना और रानी की सेना दोनों को बहुत नुकसान हुआ | अगले दिन 24 जून 1564 को मुग़ल सेना ने फिर हमला बोला अपना पक्ष दुर्बल देख रानी ने अपने नाबालिग पुत्र नारायण को सुरक्षित स्थान पर भेज दिया |और रानी युद्ध स्थल पर चली गई इसी बीच एक तीर रानी की भुजा और दूसरा तीर रानी की आँख लगा जिसे रानी ने निकाल फ़ेंक दिया तभी तीसरा तीर रानी के गले में धंस गया | रानी ने अपने सेनापति आधार सिंह से आग्रह किया कि वह अपनी तलवार से रानी की गर्दन काट दे परन्तु वह इसके लिए तैयार नहीं हुआ |अंत में रानी ने अपनी ही कटार स्वयं के सीने में भोंककर आत्मबलिदान दे दिया | जबलपुर के पास बरेला नमक स्थान पर यह युद्ध हुआ था वन्ही रानी की समाधी बनी है |
इस घटनाक्रम के बाद महाराजा दलपत शाह के भाई और चांदा गढ़ के राजा चन्द्र शाह को गढ़ा मंडला का राजा घोषित किया गया |इसके बाद सत्ता उसके पुत्र मधुकर शाह के पास आई जो ठीक ढंग से शासन नहीं चला सका | इसके बाद उसका पुत्र प्रेम नारायण गद्दी पर बैठे  जिन्होंने जीवन भर बुन्देलाओं से संघर्ष किया और प्रेम नारायण के बाद उनके पुत्र  हिरदेशाह राजा बने | हिरदेशाह द्वारा रामनगर में मोती महल , रानी का महल और राय भगत की कोठी का निर्माण  1651 से 1667 के बीच कराया गया | 1670 में मंडला को गोंडवाना की राजधानी बनाया गया | राजा हिरदेशाह  के बाद उनके पुत्र छतर शाह और हरी सिंह में लड़ाई हुई | बाद में छतर सिंह के पुत्र केसरी शाह राजा बने | हरी सिंह ने राजा केसरीशाह की हत्या करवा दी | दिवंगत राजा केसरी सिह के मंत्री और हरी सिंह के बीच युद्ध हुआ जिसमे हरी सिंह मारा गया | केसरीशाह कि मृत्यु के बाद उनके 7 वर्षीय पुत्र नरेन्द्र शाह को 1691 ईसवी में राजा घोषित किया गया | राजा नरेन्द्र शाह ने 1698 ईसवी में  मंडला में पवित्र नर्मदा नदी और बंजर के संगम पर किले का निर्माण कराया | मंडला में अंतिम गोंड शासक राजा नाहर शाह थे जिन्हें मराठों ने बंदी बना लिया और खुरई ,सागर के किले में बंदी बना कर रखा था |
1742 ईसवी से मंडला पर मराठों का वर्चस्व बढने लगा और 1781 में सम्पूर्ण गढ़ा मंडला का राज्य सागर के मराठों के अधीन आ गया | मंडला के इसी राजमहल में शंकर शाह और रघुनाथ शाह का जन्म हुआ | 1799 में मंडला नागपुर के भोंसले राजाओं के आधिपत्य में आ गया |1818 में अंग्रेजों ने मंडला के किले पर अधिकार कर लिया जो 1947 तक अंगेजों के अधीन रहा |
रानी अवंती बाई
RANI AWANTI BAI 

मंडला और डिंडोरी में 1857 के स्वतन्त्रता संग्राम (1857 Revolt in Mandla and Dindori)-

रामगढ में रानी अवंतिबाई जो रामगढ़ की रानी थीं ने 1857 के स्वतंत्रा संग्राम में इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया और अंगेजों के दांत खट्टे कर दिए | रानी अवंतिबाई का विवाह रामगढ के राजा लक्ष्मण सिह के पुत्र विक्रमादित्य से हुआ | इनके दोनों पुत्र शेरसिंह और अमन सिंह छोटे ही थे की राजा विक्षिप्त  हो गए और और राज्य की जिमेदारी रानी के कन्धों पर आ गई  |यह समाचार सुनकर अंग्रेजों ने रामगढ राज्य को ''कोर्ट ऑफ़ वार्ड्स''  के अधीन कार दिया | इसी बीच अचानक राजा का निधन हो गया |लार्ड डलहोजी की राजे रजवाड़ों को हडपने की नीति का कुचक्र देश में चलने लगा जिसका राजे रजवाड़ों ने जोर शोर विरोध किया |  जिसका रानी ने  भी विरोध  किया | 1957 की क्रांति महाकौशल तक फ़ैल चुकी थी | गढ़ा मंडला के शासक रघुनाथ शाह  ने विद्रोह के लिए विजयादशमी का दिन निश्चित किया |18 सितम्बर को अंगेजों ने  गोंड राजा रघुनाथ शाह और उनके पुत्र राजकुमार शंकर शाह को जबलपुर में अलग-अलग तोपों से बांधकर  उड़ा दिया | इसका  राजाओं और जमीदारों ने व्यापक विरोध किया  |  रामगढ के सेनापति ने भुआ बिछिया थाने पर चढाई कर दी और उसे अपने कब्जे में ले लिया |रानी के सिपाहियों ने घुघरी पर कब्जा कार लिया | विद्रोहियों ने मंडला नारायणगंज मार्ग को बंद कर दिया जिससे जबलपुर से आने वाली अंग्रजों की टुकड़ी का मार्ग बंद हो गया और इस प्रकार विद्रोह पुरे मंडला और रामगढ में फ़ैल गया | अंग्रेज डिप्टी कमिश्नर वाडिंग्टन इस विद्रोह को दबाने में असफल रहा | 23 नवम्बर  1957 को  ग्राम खैरी के पास अंग्रेजों और रानी के बीच युद्ध हुआ जिसमने शाहपुरा और मुकास के जमीदारों ने रानी का संथ दिया | इस युद्ध में मंडला के अंग्रेज डिप्टी कमिश्नर वाडिंग्टन पूरी शक्ति लगाने के बाद भी कुछ ना कार सका और मंडला छोड़ सिवनी भाग गया इस प्रकार पूरा मंडला और रामगढ़ स्वतंत्र हो गया परन्तु अंग्रेज लगातार अपनी शक्ति सहेजते रहे और 15 जनवरी 1858  को घुघरी पर नियंत्रण कार लिया |मार्च  1858 के दूसरे  सप्ताह रामगढ को घेर लिया 20 मार्च 1958 को रानी अवन्ती बाई ने अपने आप को अंग्रेजों से घिरता देख वीरांगना रानी दुर्गावती का अनुकरण करते हुए स्वयं की तलवार भोंक कर देश के लिए बलिदान दे दिया  | इसके बाद इस क्षेत्र से आन्दोलन को दबा दिया गया और रामगढ भी अंग्रेजों के अधीन आ गया | प्रतिवर्ष 20 मार्च को रानी अवन्ती बाई का बलिदान दिवस मनाया जाता है |



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