Balpur Dindori |
बालपुर जिला डिंडोरी -रानी अवन्ती बाई बलिदान स्थल
मध्य प्रदेश के डिंडोरी जिला मुख्यालय से करीब 16 किलोमीटर की दूरी पर बालपुर वह स्थान है जहाँ वीरांगना रानी अवन्ती बाई ने 1857 की क्रान्ति में 20 मार्च 1858 अंग्रेजों से युद्ध करते हुए स्वयं को दुश्मनों से घिरता देख कर अपने सीने में खंजर मारा था और देश के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया था |
बालपुर डिंडोरी-जबलपुर मार्ग पर स्थित शाहपुर कस्बे से करीब 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है | रानी अवन्ती बाई के बलिदान स्थल बालपुर का जीर्णोद्धार 20 मार्च 2007 को तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान जी के द्वारा किया गया और 2007 में यहाँ स्मारक एवं पार्क bबनाया गया था बाद में 20 मार्च 2013 को इसी स्थान पर घोड़े पर सवार वीरांगना रानी अवन्ती बाई की विशाल प्रतिमा का उद्घाटन भी मान. श्री शिवराजसिंह चोहान के द्वारा किया गया |
Rani Avanti Bai |
बालपुर में रानी अवन्ती बाई का बलिदान स्थल चारो तरफ घने पेड़ –पौधों से घिरा हुआ है | पार्क के पास लोगों की सुविधा हेतु कुछ भवन और पीने के पानी की व्यवस्था की गई थी परन्तु देख रेख के अभाव में यह सब खण्डहर में तब्दील होते जा रहे हैं | बालपुर पार्क में कुछ शिलालेख लगाये गए हैं जिनमें वीरांगना रानी अवन्ती बाई के जीवन के बारे में लिखा गया है | इनमें से मुख्य शिलालेख में रानी अवन्ती बाई की शौर्य गाथा इस प्रकार लिखी गई है –
‘’ रानी अवन्ती का जन्म ग्राम मनखेड़ी जिला सिवनी में 16 अगस्त 1831 को राव जुझार सिंह के यहाँ हुआ था | उनका विवाह रामगढ़ के राजा लक्ष्मण सिंह के पुत्र कुँवर विक्रमादित्य से हुआ था | विक्रमादित्य के अल्पायु में मृत्यु होने के बाद रानी अवन्ती बाई ने राज्य की बागडोर सम्हाली | 1857 के स्वतन्त्रता संग्राम में मंडला के डिप्टी कमिसनर अंग्रेज़ अफसर वडिंगटन ने मंडला के महराज शंकर शाह और उनके वीर पुत्र रघुनाथ शाह को तोप से उड़ा देने पर वीरांगना अवन्तीबाई ने क्रांति का शंखनाद करते हुये देशवासियों में मर मिटने की भावना जाग्रत की तथा इस स्वतन्त्रता संग्राम मे अपने सहयोगियों के सांथ स्वयं कूद पड़ीं |
रानी अवन्तीबाई ने केप्टिन वडिंगटन को दो वार पराजित किया था परंतु तीसरी लड़ाई में देवहारगढ़ के जंगल में अंग्रेजों से लोहा लेते रामगढ़ की ओर बढ़ी एवं शाहपुर के विश्राम गृह के पीछे तालाब के पास मंदिर में पूजन अर्चन कर आगे बालपुर के पास अंग्रेजों से चारो तरफ से घिर गईं तब उन्होने अपनी आन बान सान के लिए स्वयं अपने पेट में कटार मारकर 20 मार्च 1858 को बालपुर नदी के पास वीरगति को प्राप्त हुईं |’’
बालपुर का यह स्थान रानी अवंतीबाई का बलिदान स्थल है | रानी के वीरगति को प्राप्त हो जाने के पश्चात उनके सैनिकों द्वारा रानी अवन्ती बाई के पार्थिव शरीर को रामगढ़ ले जाया गया और रामगढ़ में ही रानी अवंतीबाई का अंतिम संस्कार किया गया | स्थानीय लोगों के अनुसार रामगढ़ में ही रानी अवन्ती बाई की समाधि है जो बहुत ही अधिक जीर्ण शीर्ण हालत मैं है |बालपुर में रानी अवन्ती बाई का बलिदान स्तर उपेक्षा का शिकार हो रहा है | इस स्थान पर स्थापित रानी अवन्ती बाई की प्रतिमा के नीचे लगी टाइल्स उखड चुकीं है | पास में बने भवन भी जर्जर हो चले हैं |
यह हमारा और शासन का नैतिक कर्तव्य है कि भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन में अपने प्राणों की आहुति देने वाले वीर वीरांगनाओं की ऐतिहासिक धरोहरों को अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रखें ताकि वो भी इनके बलिदान और त्याग के बारे में जान सकें | महान वीरांगना रानी अवंतीबाई बाई को हमारा कोटि कोटि नमन् |
Rani Avanti Bai |